नयी पीढ़ी को सलीब उठाना ही होगा


जब वर्तमान करवट बदलता है तो मानो कुछ अप्रत्याशित सा घटने वाला होता है. ऐसा लगने लगता है जैसे कोई नया इतिहास लिखा जाने का आगास हो रहा है. आज जब भ्रष्टाचार हमारे आम व्यवहार का हिस्सा बन गया है और सब ओर निराशा का और भ्रष्टाचार के सामने हार जाने जैसा ग़मगीन माहोल बन गया है, ऐसी परिस्थिति  में पूरे देश में भ्रष्टाचार को मिटाने की जो एक नयी शुरुआत हुई है, वह अगर सही दिशा में अग्रसर होती रही तो संभवतः हमारा हिंदुस्तान एक बेमिसाल गणतंत्र बन जायेगा लेकिन चरित्र में लग चुकी दीमक को पहचानकर उसे अपने आप से अलग कर फेंकने का साहस जुटाना और अब नए सिरे से " सद्चरित्र " का बीजारोपण करना भ्रष्ट-आचरण करने वाले नागरिकों के लिए,  किसी पुरानी लत से पीछा छुड़ाने जैसा,  मुश्किल काम होगा.
आज जितनी ज़रूरत भ्रष्टाचार के खिलाफ पुरजोर आवाज़ उठाने और तमाम भ्रष्टाचारियों को सज़ा देने की है, उससे कहीं ज्यादा ज़रूरत, बाकी बच रहे भ्रष्टाचारियों को नैतिकता की राह पर लौटाने की प्रेरणा देने की भी है.
इस संक्रमणकाल में हर एक परिवार के बच्चों की यह नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपनी लाइफ स्टाइल और खर्चों का तालमेल बैठाकर, कमाई करके लाने वाले अपने माता-पिता को और भाई-बहनों को नीतिपूर्ण और ईमानदार जीवन जीने की प्रेरणा दें और स्वयं भी तकलीफ उठाकर ही सही, लेकिन एक नए ईमानदार गणतंत्र की स्थापना में अपना योगदान दें, तभी भ्रष्टाचार के खिलाफ हम सब हमेशा के लिए प्रतिबद्ध हो सकेंगे अन्यथा ऐसी मुहिम एक तात्कालिक घटना बनकर हमारे दिलो-दिमाग से कुछ दिनों के बाद ओझिल हो जायेगी और हमारा गणतंत्र भ्रष्टाचार के दलदल में और गहरा दफ्न होता चला जाएगा, जिसे बचाने के लिए हमारे बीच कोई भी "महात्मा" या "अन्ना" बाकी बच नहीं रह पायेगा और दुर्भाग्यवश अगली पीढ़ी के सामने "आदर्श" के रूप में वर्तमान भ्रष्टाचारी लोग ही बच रहेंगे, जो आज तो अपने देश के दुश्मन हैं और कल पूरी मानवता के दुश्मन साबित होंगे. इसलिए हर एक आम और ख़ास को और विशेष तौर पर नयी पीढ़ी को देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने का सलीब, ईसा मसीह की तरह, अपने कांधों पर उठाना ही होगा, तभी हम सब देशवासी, भ्रष्टाचार की गुलामी और अतिभौतिकता रूपी विषकन्या जनित चारित्रिक पतन के श्राप से मुक्त / आज़ाद हो पायेंगे और हमेशा के लिए एक ठोस राष्ट्रीय चरित्र की आधारशिला, प्रत्येक नागरिक के अंतःकरण में पुनर्स्थापित करने में सफल हो सकेंगे.
* पीयूष माथुर  

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