माँ और पापा या आई और बाबा : दो शब्द हैं, खुशबू से भरे
( पीयूष माथुर )
शब्द ख़ाली नहीं होते
उनमे होती है एक खुशबू
जो याद दिलाती है उन एहसासों का
जिनके ताने बाने से बुना होता है हमारा सारा जीवन
'माता' - 'पिता', कहने के लिहाज़ से.....दो शब्द ही तो हैं,
हमारे बोलने की भाषा के
लेकिन इन शब्दों के कण कण में बसी हुई खुशबू
याद दिलाती है ऐसे दो प्यारे से, मीठे से नगमों का
जो हमारी रग़ रग़ में
किसी मनमोहक गाने की मीठी सी धुन की मानिंद
घुली बसी होती है.
उनका हमारे जीवन में रहना या बहुत दूर चले जाना
एक खुशबू के मद्धिम झोंके की तरह ही तो होता है
जो हर बार हमें छूकर आता और जाता हुआ
अपने बीते हुए स्वर्णिम पलों का स्मरण करा जाता है.
माँ और पापा, या आई और बाबा
हम जो भी सम्बोधन करें
इन शब्दों में हमेशा खुशबू का एक सैलाब सा उमड़ा चला आता है
हमारे बीते बचपन और जवानी के अच्छे-बुरे दिनों को
अपने दुलार भरे हाथों से सहलाता हुआ
ढलते हुए सूरज के साथ, हर शाम जाने कहाँ दूर चला जाता है.
[अपने स्वर्गीय माता पिता की स्मृति में फादर्स दे पर अभिव्यक्त भाव ]
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